(जैन धर्म का मौलिक इतिहास पुस्तक भाग २ पृष्ट संख्या ३१०
से उध्द्र्त )
किसी समय एक व्यापारी माल की बहुत सारी बैलगाड़ियां भर कर
साथियों के साथ दुसरे देश में जा रहा था | उसने रास्ते में खर्चे के लिए फुटकर
सिक्कों का बोरा एक खच्चर पर लाद रखा था| जंगल में चलते हुए फुटकर सिक्कों का वह
बोरा किसी तरह से फट गया और उसमे से बहुत से सिक्के निकल कर बाहर गिर गए | इसका
पता चलने पर उस व्यपारी ने अपनी सभी बैलगाड़ियों को रोक दिया और वो सिक्के इक्कठे
करने लगा | साथ के रक्षकों ने उस व्यापारी से कहा “क्यों कौड़ियों के बदले अपने करोड़ों के माल को खतरे में डाल रहे हो ? यहाँ इस खतरनाक जंगल में चोरों का बड़ा
आतंक है अत: बैलगाड़ियों को शीघ्र आगे बढ़ने
दो|”
रक्षकों की उचित सलाह को अस्वीकार करते हुए उस व्यपारी ने
कहा “भविष्य का लाभ संदिग्ध है, ऐसी दशा में जो कुछ पास में है उसको छोड़ना उचित नहीं” और वह उन फुटकर सिक्कों को इक्कठा करने में जुट गया|
साथ के अन्य लोग और रक्षक उस व्यापारी के माल से भरी बैलगाड़ियों
को वहीँ छोड़ आगे बढ़ गए| व्यापारी सिक्कों
को इक्कठा करता रह गया और बाकि सभी साथी जंगल से चले गये|
उस व्यापारी के साथ रक्षकों को न देखकर डाकुओं ने उस पर
हमला कर दिया और उसका सारा माल लूट लिया|