भगवान ने समझाया, "श्रेणिक! श्रद्धा और भक्ति के बल पर नरक से छुटकारा तो क्या स्वर्ग के सिंहासन की प्राप्ति भी असम्भव नहीं, परन्तु अपने उग्र कर्मों का फल तो प्रत्येक जीव को भोगना ही पड़ता है|"
लेकिन श्रेणिक संतुष्ट नहीं हुआ| सोचने लगा, "यह विशाल साम्राज्य! यह अक्षय कोष, इतनी धन दौलत क्या नरक से नहीं बचा सकते"
उसने फिर प्रार्थना की. "प्रभु! किसी भी तरह मुझे नरक से बचने का उपाय बतलाइए| मैं अपना पूरा राज्य, ऐश्वर्य, धन-दौलत सब कुछ लुटाने को तैयार हूँ|"
भगवान महावीर समझ गए की श्रेणिक में अपने राज्य तथा कोष का अहंकार है और जहाँ अहंकार हैं वहाँ मुक्ति कैसी? प्रभु गंभीर स्वर में बोले, "श्रेणिक! एक उपाय है, यदि पुणिया श्रावक की एक सामायिक का फल तुम्हें प्राप्त हो जाए तो तुम्हारी नरक टल सकती है|"
श्रेणिक ख़ुशी से झूम उठा| सोचने लगा, "एक सामायिक का मूल्य क्या होगा? हज़ार या लाख स्वर्ण मुद्राएँ, और क्या? यह बहुत ही आसान उपाय है"
वह तुरंत वहाँ से पुणिया श्रावक के पास पँहुचे और बड़ी ही विनम्रता से बोले, " हे श्रावक श्रेष्ट! मैं एक इच्छा लेकर तुम्हारे पास आया हूँ| जो मांगोगे वही मूल्य दूंगा| मुझे निराश मत लौटना|"
पुणिया श्रावक आश्चर्यचकित होकर बोला, "कहिये महाराज! मुझ जैसे साधारण गृहस्थ से आपको कौनसी वस्तु की अभिलाषा है"
श्रेणिक बोले, "पुणिया श्रावक! मुझे कोई वस्तु नहीं, तुम्हारी एक सामायिक का फल चाहिए| बोलो, किस मूल्य पर दे सकते हो|"
पुणिया श्रावक, महाराज का मुंह आश्चर्य से देखने लगा| "महाराज! सामायिक?"
"हाँ श्रावक श्रेष्ट! भगवान महावीर ने कहा है की तुम्हारी एक सामायिक का फल मेरी नरक टाल सकता है| बोलो क्या मूल्य लगाओगे ? संकोच मत करो, जो मूल्य हो बता दो"
पुणिया श्रावक ने गंभीरतापूर्वक कहा, " महाराज! मेरे लिए यह बिल्कुल नइ बात है| मैं सामायिक का मूल्य क्या बताऊँ? जिसने लेने के लिए कहा है, वाही उसका मूल्य भी बता सकते हैं| आप प्रभु से ही पूछिए एक सामायिक का मूल्य क्या हो सकता है"
श्रेणिक तुरंत महावीर की सेवा में उपस्थित होकर सारा वृतांत बताते हुए बोला, " भगवन! पुणिया श्रावक सामायिक देने के लिए तैयार है| कृपा करके एक सामायिक का मूल्य बता दीजिए"
प्रभु ने देखा की राजा का अहंकार और बढ़ रहा है, वह भौतिक वैभव के द्वारा आध्यात्मिक समाधान चाहता है|
प्रभु ने फिर कहा, "सम्राट! सामायिक की भौतिक संपत्ति से क्या तुलना? यदि भूतल से चन्द्र लोक तक स्वर्ण एवं रत्नों का अम्बार लगा दिया जाए तब भी सामायिक का मूल्य तो क्या, सामायिक की दलाली भी पूरी नहीं हो सकती"
"राजन! मृत्यु के द्वार पे पँहुचे हुए किसी व्यक्ति को क्या करोड़ों स्वर्ण मुद्रा देकर बचाया जा सकता है? सामायिक को वही प्राप्त कर सकता है, जिसका मन निर्मल हो, समत्व में स्थित हो, भौतिक आकांक्षाओ से रहित हो| सामायिक बाहर में किसी से लेने की चीज़ नहीं है, वह तो स्वयं अपने अन्दर ही पा लेने वाली शुद्ध स्थिति है| पुणिया श्रावक की सामायिक से मेरा अभिप्राय उससे सामायिक खरीदने का या मांगने का नहीं था| मेरा अभिप्राय था की पुणिया श्रावक जैसी शुद्ध सामायिक होनी चाहिए| न उसमें इस लोक की कोई कामना हो ना परलोक की|"
महाराज श्रेणिक सुनते ही चकित हो गए| भौतिक धन के द्वारा सामायिक खरीदने का उसका अहंकार चूर चूर हो गया|
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