किसी नगर में तीन मित्र रहते थे - एक राजकुमार, एक मंत्रीपुत्र और एक व्यापारी का पुत्र| एक बार तीनों इकठ्ठा होकर बोले की पता लगाया जाए कौन कैसे जीता है? राजकुमार ने कहा "मैं अपने पुण्य से जीता हूँ"| मंत्रीपुत्र ने कहा "मैं अपने बुद्धिबल से जीता हूँ"| व्यापारी के पुत्र ने कहा "मैं अपनी चतुराई से जीता हूँ"|
परीक्षा के लिए तीनों मित्र परदेश गए और किसी नगर में पँहुच कर एक उद्यान में ठहरे| व्यापारी पुत्र से कहा गया की वह शीघ्र ही भोजन की व्यवस्था करे|
व्यापारी पुत्र एक बनिए की दुकान पर गया| संयोगवश, उस दिन कोई उत्सव था, इसलिए उसकी दुकान पर इतनी भीड़ थी की बनिया सब ग्राहकों को नहीं निबटा पा रहा था| व्यापारी पुत्र उसकी दुकान पर पँहुच कर ग्राहकों को नमक, घी, तेल, गुड, मिर्च आदि तौलकर पुडिया आदि बांध कर देने लगा| भीड़ ख़त्म होने पर बनिए ने हिसाब लगाया तो उस दिन उसे बहुत लाभ हुआ था| उसने खुश होकर व्यापारी पुत्र को भोजन के लिए निमंत्रित किया| लेकिन व्यापारी पुत्र ने कहा की उसके दो और साथी नगर के बाहर उद्यान में ठहरे हुए हैं| बनिए ने उसके साथियों को बुलाकर तीनों को भोजन आदि करवाकर उनका सम्मान किया और पाँच रूपये देकर उनको विदा किया| इस प्रकार व्यापारी पुत्र के अपने चतुराई से जीने की बात साबित हो गई|
दुसरे दिन मंत्रीपुत्र की बारी थी| मंत्रीपुत्र नगर के न्यायलय में पँहुचा| उस समय न्यायलय में मुकदमा चल रहा था| जिसमें दो सौतों के बीच झगडा चल रहा था| एक सौत के पुत्र था और दुसरे के नहीं| जिसके पुत्र नहीं था वह पुत्रवाली सौत के लड़के को बड़े लाड चाव से रखती थी| धीरे धीरे वह लड़का उससे इतना हिल मिल गया की उसने अपनी माँ के पास जाना ही छोड़ दिया| एक दिन किसी बात पर दोनों में लड़ाई हो गई, दोनों कहने लगी की लड़का मेरा है|" न्यायाधीश बहुत कोशिश करने पर भी यह न जान सका की लड़के की असली माँ कौन है?
मंत्रीपुत्र ने मुकदमा सुनने के पश्चात न्यायाधीश से कहा " यदि आपकी आज्ञा हो तो इस मुकदमे में मैं आपकी कुछ मदद करूँ?" न्यायाधीश से आज्ञा मिलने पर मंत्रीपुत्र ने दोनों सौतों को बुलाकर कहा "अगर तुम लोग सच नहीं बताती हो तो हम अभी इस लड़के के टुकड़े टुकड़े करके दोनों को आधा आधा बाँट देंगे|"
यह सुनते ही लड़के की असली माँ रोते हुए कहने लगी, "मुझे पुत्र नहीं चाहिए, उसे मेरी सौत को दे दिया जाय| अगर यह जीता रहा तो मैं इसे कम से कम देख तो लिया करुँगी|"
न्यायाधीश समझ गया की पुत्र किसका है| मंत्रीपुत्र का बहुत सम्मान हुआ और उसे एक हज़ार रूपये भेंट देकर विदा किया गया| मंत्रीपुत्र के बुद्धिबल की भी परीक्षा हो चुकी थी|
अब बारी थी राजकुमार के पुण्य की परीक्षा की| राजकुमार अपने भाग्य के भरोसे उठकर चल दिया| संयोगवश उस दिन नगर का राजा मर गया था| उसके कोई पुत्र नहीं होने से राज्य को कोई उत्तराधिकारी नहीं मिल रहा था | मंत्रियों ने विचार विमर्श करके यह निर्णय किया की एक हाथी को पुष्पमाला लेकर नगर में छोड़ दिया जाए और ये हाथी जिसके गले में पुष्पमाला डालेगा उसे नगर का राजा घोषित किया जाए| राजकुमार नगर में एक वृक्ष की छाया में बैठा था तभी वह हाथी उधर से गुजरा और उसने राजकुमार के गले में पुष्प माला डाल दी और राजकुमार को मंत्रियों ने राजगद्दी पर बैठा दिया|
राजकुमार ने अपने साथियों को अपने पास बुला लिया और सब आनंदपूर्वक रहने लगे|
परीक्षा के लिए तीनों मित्र परदेश गए और किसी नगर में पँहुच कर एक उद्यान में ठहरे| व्यापारी पुत्र से कहा गया की वह शीघ्र ही भोजन की व्यवस्था करे|
व्यापारी पुत्र एक बनिए की दुकान पर गया| संयोगवश, उस दिन कोई उत्सव था, इसलिए उसकी दुकान पर इतनी भीड़ थी की बनिया सब ग्राहकों को नहीं निबटा पा रहा था| व्यापारी पुत्र उसकी दुकान पर पँहुच कर ग्राहकों को नमक, घी, तेल, गुड, मिर्च आदि तौलकर पुडिया आदि बांध कर देने लगा| भीड़ ख़त्म होने पर बनिए ने हिसाब लगाया तो उस दिन उसे बहुत लाभ हुआ था| उसने खुश होकर व्यापारी पुत्र को भोजन के लिए निमंत्रित किया| लेकिन व्यापारी पुत्र ने कहा की उसके दो और साथी नगर के बाहर उद्यान में ठहरे हुए हैं| बनिए ने उसके साथियों को बुलाकर तीनों को भोजन आदि करवाकर उनका सम्मान किया और पाँच रूपये देकर उनको विदा किया| इस प्रकार व्यापारी पुत्र के अपने चतुराई से जीने की बात साबित हो गई|
दुसरे दिन मंत्रीपुत्र की बारी थी| मंत्रीपुत्र नगर के न्यायलय में पँहुचा| उस समय न्यायलय में मुकदमा चल रहा था| जिसमें दो सौतों के बीच झगडा चल रहा था| एक सौत के पुत्र था और दुसरे के नहीं| जिसके पुत्र नहीं था वह पुत्रवाली सौत के लड़के को बड़े लाड चाव से रखती थी| धीरे धीरे वह लड़का उससे इतना हिल मिल गया की उसने अपनी माँ के पास जाना ही छोड़ दिया| एक दिन किसी बात पर दोनों में लड़ाई हो गई, दोनों कहने लगी की लड़का मेरा है|" न्यायाधीश बहुत कोशिश करने पर भी यह न जान सका की लड़के की असली माँ कौन है?
मंत्रीपुत्र ने मुकदमा सुनने के पश्चात न्यायाधीश से कहा " यदि आपकी आज्ञा हो तो इस मुकदमे में मैं आपकी कुछ मदद करूँ?" न्यायाधीश से आज्ञा मिलने पर मंत्रीपुत्र ने दोनों सौतों को बुलाकर कहा "अगर तुम लोग सच नहीं बताती हो तो हम अभी इस लड़के के टुकड़े टुकड़े करके दोनों को आधा आधा बाँट देंगे|"
यह सुनते ही लड़के की असली माँ रोते हुए कहने लगी, "मुझे पुत्र नहीं चाहिए, उसे मेरी सौत को दे दिया जाय| अगर यह जीता रहा तो मैं इसे कम से कम देख तो लिया करुँगी|"
न्यायाधीश समझ गया की पुत्र किसका है| मंत्रीपुत्र का बहुत सम्मान हुआ और उसे एक हज़ार रूपये भेंट देकर विदा किया गया| मंत्रीपुत्र के बुद्धिबल की भी परीक्षा हो चुकी थी|
अब बारी थी राजकुमार के पुण्य की परीक्षा की| राजकुमार अपने भाग्य के भरोसे उठकर चल दिया| संयोगवश उस दिन नगर का राजा मर गया था| उसके कोई पुत्र नहीं होने से राज्य को कोई उत्तराधिकारी नहीं मिल रहा था | मंत्रियों ने विचार विमर्श करके यह निर्णय किया की एक हाथी को पुष्पमाला लेकर नगर में छोड़ दिया जाए और ये हाथी जिसके गले में पुष्पमाला डालेगा उसे नगर का राजा घोषित किया जाए| राजकुमार नगर में एक वृक्ष की छाया में बैठा था तभी वह हाथी उधर से गुजरा और उसने राजकुमार के गले में पुष्प माला डाल दी और राजकुमार को मंत्रियों ने राजगद्दी पर बैठा दिया|
राजकुमार ने अपने साथियों को अपने पास बुला लिया और सब आनंदपूर्वक रहने लगे|
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