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अधूरी जोड़ी

भादों की काली अंधियारी रात में घने काले बादल गरज गरज कर बरस रहे थे, चारों ओर अंधकार छाया था और अत्यंत तीव्र बारिश हो रही थी, बिजलियाँ रह रह कर कौंध रही थी| महाराज श्रेणिक तथा उनकी महारानी चेलना अपने महल से बारिश का आनंद ले रहे थे, तभी रात्रि के गहन अंधकार को चीरते हुए दूर एक बिजली चमकी, राजा व रानी ने बिजली की रौशनी में देखा की एक वृद्ध व्यक्ति बारिश में उफनती नदी में से लकड़ियाँ बीन रहा है |
उस वृद्ध को देख कर दोनों विचार में पड़ गए की हमारे राज्य में ऐसा भी कोई दरिद्र है कि दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद भी दो वक्त की रोटी का प्रबंध नहीं हुआ , तभी तो इतनी तेज बारिश में अपने प्राणों की परवाह न करते हुए ये वृद्ध लकड़ियाँ इक्कठी कर रहा है | महान मगध राज्य में इतनी दरिद्रता ? ऐसी बारिश व अंधेरे में तो जानवर भी बाहर नहीं निकलते और यहाँ तो आदमी को अपने पेट की आग बुझाने के लिए मौत से खेलना पड़ता है | यह सोचकर राजा को उस वृद्ध पर दया आ गई|
उसने तुरंत अपने सेवकों को बुलाकर कहा की जाओ और नदी पर जो वृद्ध व्यक्ति लकड़ियाँ इक्कठी कर रहा है उसका पता लगाओ तथा उसे कल सुबह राज दरबार में उपस्तिथ करो |
वृद्ध की दरिद्रता के बारे में सोच सोच कर राजा को रात भर नींद नहीं आई, अँधेरी बारिश व तेज हवा में थर थर काँपता उस वृद्ध का चेहरा बार बार उसके सामने आ जाता|
प्रात: सेवकों ने एक व्यक्ति को महल में पेश करते हुए राजा से कहा “महाराज ये वो आदमी है जो कल रात नदी से बह कर आती हुई लकड़ियाँ इक्कठी कर रहा था |”
राजा ने उस व्यक्ति को ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा| शरीर पर बेशकीमती रेशम के वस्त्र, कानों में मणि जड़ित कुंडल तथा हाथों में हीरों की अंगूठियाँ देख कर राजा को लगा की सेवक गलती से किसी और व्यक्ति को पकड़ लाए हैं| उसने सेवकों को क्रोध में कहा “ये किन्हें पकड़ कर लाए हो, तुम लोगों से कुछ भूल हुई है”
सेवक बोले “ नहीं महाराज! यही वो व्यक्ति है जो कल रात बारिश में नदी के किनारे पर लकड़ियाँ इक्कठी कर रहा था, हमसे कोई भूल नहीं हुई है|”
राजा ने आश्चर्यचकित होकर उस व्यक्ति से उसका परिचय पुछा | वह व्यक्ति बोला “ महाराज ! मैं आपके ही राज्य का एक व्यापारी हूँ, मुझे लोग मम्मण सेठ के नाम से जानते हैं|”
राजा बोले “आप दिखने में तो बड़े ही धनवान एवं सुखी लगते हैं , फिर इतनी बारिश में नदी के किनारे जाकर अपने प्राणों को दांव पे लगाने की क्या ज़रूरत थी |”
इस पर मम्मण सेठ बोला “ महाराज! दिखने में तो मैं बड़ा ही धनवान व सुखी हूँ पर मेरे मन की पीड़ा को तो बस मैं ही जनता हूँ| मैं एक बहुत बड़े अभाव से ग्रस्त हूँ, जिसकी पूर्ती के लिए मैंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है, ये सुन्दर वस्त्र एवं आभूषण तो कहीं आने जाने के लिए रखे हैं, अन्यथा मेरे पास तो अब कुछ भी नहीं है | सब कुछ लगाकर भी मेरी कमी पूरी नहीं हो रही है, जिसके कारण में कल रात नदी से लकड़ियाँ इक्कठी करने गया था, और जब तक वो कमी पूरी नहीं हो जाती मुझे वहां जाते रहना होगा”
राजा बोले “ ऐसी कौनसी कमी है आपको ? मुझे बताइए, हो सकता है मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूँ|”
सेठ बोला “महाराज मेरे पास एक परम सुन्दर बैल है, उसी की जोड़ी का दूसरा बैल मुझे चाहिए इसीलिए ये कठोर परिश्रम कर रहा हूँ |”
राजा बोले “ इसमें कौनसी बड़ी बात है, आप हमारी वृषभशाला में जाइये और जो बैल पसंद आए ले जाइये “
सेठ बोला “ महाराज! आपकी कृपा के लिए धन्यवाद, परन्तु जो मेरे बैल की जोड़ी का एक भी बैल आपकी वृषभ शाला में नहीं है|”
यह सुनकर महाराज सोच में पड़ गए की ऐसा कैसा बैल है जिसकी जोड़ी में हमारी वृषभ शाला के हजारों बैलों में से कोई नहीं | राजा बोले “ऐसा कैसा बैल है आपके पास, उसे लेकर आइये, हम उस अद्वितीय बैल को देखना चाहेंगे |”
सेठ बोला “महाराज ! मेरा बैल यहाँ नहीं आ सकता, उसे देखने के लिए तो आपको मेरा घर पवित्र करना पड़ेगा”
राजा की उत्सुकता और बढ़ गई| उन्होंने अपने मंत्री अभयकुमार से मंत्रणा कर अगले दिन ही सेठ के घर जाना निश्चित किया| जब रानी ने राजदरबार का पूरा वृत्तांत सुना तो वो भी चलने को उतावली हो उठी| अगले दिन महाराज श्रेणिक अपने मंत्री अभयकुमार तथा पत्नी चेलना के साथ सेठ के घर पंहुचे| मम्मण सेठ ने महराज का स्वागत किया तो राजा ने कहा की “सेठ ! सीधे गौशाला में ले चलो, हमें केवल तुम्हारा बैल देखना है|” तब सेठ ने कहा की उसका बैल गौशाला में नहीं बल्कि घर में है| राजा ने सोचा कैसा मुर्ख है ये सेठ जो बैल को घर में रखता है|
सेठ तीनों को लेकर अपने मकान के तहखाने में गया, तथा आगे बढ़कर जैसे ही एक कक्ष का पर्दा हटाया की चारों और रंग बिरंगा प्रकाश फ़ैल गया| सामने ही हीरे,मोती तथा रत्नों से जड़ित एक सोने के बैल की मूर्ति थी, उसकी तीव्र ज्योति चारों और प्रकाश फैला रही थी| बैल की आँखों में अत्यंत दुर्लभ मणियाँ थीं | सिंग तथा पूँछ पर नीलम के पन्ने थे | राजा, रानी तथा मंत्री तो उस बैल को देखकर ठगे से रह गए, उन्होंने ऐसा बैल तो आजतक देखा तक नहीं था|
राजा को चकित देखकर सेठ बोला “महाराज ! कई वर्षों पहले मैंने अपने व्यापार से कमाए धन को एक स्थान पर सुरक्षित रखने के लिए यह बैल बनवाया था, परन्तु उस समय मुझे भी नहीं मालूम था की यह इतना सुन्दर बन जाएगा| मैं दिन रात बस इसी के बारे में सोचता रहता| एक दिन मेरे मन में आया की अगर इसकी जोड़ी का एक दूसरा बैल भी होता, तो कितना सुन्दर होता, दोनों साथ में खड़े होते तो इनका सौंदर्य तथा वैभव तो और भी अद्भुत होता| यही सोच कर मैंने एक ऐसा ही एक और बैल बनाने की ठानी, परन्तु मेरे पास इतना धन शेष नहीं बचा था की वैसा ही एक और बैल बनाया जा सके| इतना सारा धन इक्कठा करने के लिए मैंने व्यापर में बहुत परिश्रम करना प्रारम्भ किया, अपने सभी खर्चों को कम कर दिया, रुखी सुखी खाता था, फटे कपड़े पहनता था, किसी तरह का कोई सुख नहीं उपभोग करता, परन्तु फिर भी उतना धन इक्कठा नहीं हो पाया इसीलिए अब में दिन भर व्यापार करता हूँ तथा रात में नदी से लकड़ियाँ लाकर बेचता हूँ ताकि अधिक धन इक्कठा हो सके| इतना कहकर व्यपारी तीनों को एक दुसरे कक्ष में ले गया|
कक्ष का पर्दा जैसे ही हटा, वहां भी पहले के समान एक हीरे, मोतियों से जड़ा सोने का सुन्दर बैल था| उसे देख कर सेठ बोला “ महाराज ! ये उसकी जोड़ी का बैल है| ये लगभग पूरा बन चुका है, केवल दाहिने सिंग का कुछ हिस्सा बनाना बाकि है, बस उसी के लिए मैं रोज़ नदी पे जाता हूँ|”
राजा, रानी तथा मंत्री भ्रमित व चकित होकर उस सेठ की बातों को सुन रहे थे| अंत में राजा ने बोला “ सेठ ! आप सत्य कहते थे, ऐसा बैल तो मेरी वृषभ शाला में हो ही नहीं सकता|” इतना कहकर वे वापस अपने महल लौटने लगे | मन ही मन राजा को कभी सेठ के उन बैलों पे आश्चर्य आता तो कभी सेठ की बैल जैसी बुद्धि पे तरस आता जिसके कारण वो अपने अपार धन से सुख भोगने तथा दान पुण्य करने के बजाय बैल बनाने में लगा है, जो उसके लोभ को और बढाने के किसी काम नहीं आने वाला|

राजा ने रानी से कहा "देवी ! क्या आप लोभ में अंधे इस सेठ की गरीबी मिटा सकती हो ?" तो रानी बोली " लोभ तथा ममता में डूबे इस सेठ की एक क्या अनंत जोड़ियाँ भी बन जाए तो भी एक जोड़ी तो बाकि ही रह जाएगी | ऐसे व्यक्ति की कोई सहायता नहीं कर सकता |"