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अनाथि मुनि

मगध की राजधानी राजगृही के बाहर मण्डित-कुक्षी नामक एक बड़ा ही सुन्दर उपवन था| एक बार मगध के महाराज श्रेणिक उस उपवन में घुमने गए| घूमते हुए रास्ते में उन्होंने देखा की एक वृक्ष के नीचे एक तरुण मुनि ध्यान में खड़े हैं, ललाट पर अद्भुत तेज तथा प्रतिमा के समान बिल्कुल स्थिर शरीर देखकर राजा बहुत प्रभावित हुए, और वह सहज ही मुनि के सामने करबद्ध हो कर खड़े हो गए|

अधूरी जोड़ी

भादों की काली अंधियारी रात में घने काले बादल गरज गरज कर बरस रहे थे, चारों ओर अंधकार छाया था और अत्यंत तीव्र बारिश हो रही थी, बिजलियाँ रह रह कर कौंध रही थी| महाराज श्रेणिक तथा उनकी महारानी चेलना अपने महल से बारिश का आनंद ले रहे थे, तभी रात्रि के गहन अंधकार को चीरते हुए दूर एक बिजली चमकी, राजा व रानी ने बिजली की रौशनी में देखा की एक वृद्ध व्यक्ति बारिश में उफनती नदी में से लकड़ियाँ बीन रहा है |

तीन गाथाएँ

राजा यवराज विशाला नगरी के राजा थे | उनके एक पुत्र गर्धपिल्ल तथा एक पुत्री अनुल्लिका थी | यवराज को अपनी बढ़ती उम्र देख कर संसार से विरक्ति हो गई और उन्हने सन्यास लेने का निश्चय किया | उनके मंत्रियों ने उन्हें बहुत समझाया की राजकुमार अभी छोटे हैं तथा उनके राज्य सँभालने लायक हो जाने तक राजा को रुकना चाहिए , परन्तु उनके वैराग्य के सामने किसी की नहीं चली तथा उन्होंने राज्य महामंत्री दिर्घप्र्ष्ट के भरोसे छोड़ कर एक सद्गुरु से दीक्षा ले ली तथा अपने गुरु के साथ साधु जीवन बिताने लगे |

क्रोध और विवेक

एक बार शीत ऋतु में राजा श्रेणिक अपनी पत्नी चेलना के साथ भगवान महावीर के दर्शन कर वापस महल की तरफ लौट रहे थे| रास्ते में एक नदी के किनारे उन्होंने एक मुनि को ध्यान में लीन देखा| उन्हें देख कर रानी ने सोचा, धन्य हैं ये मुनि जो इतनी भयंकर सर्दी में भी निर्वस्त्र ध्यान कर रहे हैं मुझे तो इतने कम्बल पहनने के बाद भी ठण्ड के मारे कंपकंपी छुट रही है| यह सोच कर राजा व रानी श्रद्धा पूर्वक उन्हें प्रणाम कर अपने महल लौट आये| रानी के मन में उन मुनि की बात घर कर गई, जब भी उनको भयंकर ठण्ड का अनुभव होता, श्रद्धा से उनका सर मुनि के चरणों में झुक जाता|

वणिक का दृष्टान्त

(जैन धर्म का मौलिक इतिहास पुस्तक भाग २ पृष्ट संख्या ३१० से उध्द्र्त )

किसी समय एक व्यापारी माल की बहुत सारी बैलगाड़ियां भर कर साथियों के साथ दुसरे देश में जा रहा था | उसने रास्ते में खर्चे के लिए फुटकर सिक्कों का बोरा एक खच्चर पर लाद रखा था| जंगल में चलते हुए फुटकर सिक्कों का वह बोरा किसी तरह से फट गया और उसमे से बहुत से सिक्के निकल कर बाहर गिर गए | इसका पता चलने पर उस व्यपारी ने अपनी सभी बैलगाड़ियों को रोक दिया और वो सिक्के इक्कठे करने लगा | साथ के रक्षकों ने उस व्यापारी से कहा “क्यों कौड़ियों के बदले अपने करोड़ों के माल को खतरे में डाल रहे हो ? यहाँ इस खतरनाक जंगल में चोरों का बड़ा आतंक है अत: बैलगाड़ियों  को शीघ्र आगे बढ़ने दो|”