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मेघकुमार की कहानी

मेघकुमार मगध सम्राट राजा श्रेणिक व रानी धारिणी का पुत्र था| राज्य परिवार की परंपरा के अनुसार उसे बचपन में ही पुरुष की 72 कलाएँ सिखाई गई| जब शादी योग्य हुआ तो आठ राज कन्याओं के साथ उसकी शादी हो गई| एक दिन उसने प्रभु महावीर का त्याग, वैराग्य पूर्ण प्रवचन सुना तो उसके मन में दीक्षा लेने के भाव जाग गए| उसने अपने माता पिता से कहा, "आपने दीर्घकाल तक मेरा बड़े ही प्यार से पालन किया है, किन्तु में अब इस संसार के जन्म जरा के दुखों से ऊब चूका हूँ| मेरी भावना प्रभु महावीर के चरणों में संयम धर्म स्वीकारने की है|"

मन की लड़ाई

एक बार जब राजा श्रेणिक भगवान महावीर के दर्शनों को जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक मुनि घोर तपस्या में लीन दिखाई दिए | कायोत्सर्ग की अवस्था में सूर्य की ओर मुख करके वो पर्वत के सामान स्थिर अपने ध्यान में लीन थे| राजा श्रेणिक ने उनको वंदन किया तथा प्रभु महावीर के दर्शनों को चल दिये|
भगवान महावीर के दर्शनों के बाद श्रेणिक ने पुछा “भगवन ! आज आते समय रस्ते में एक महान तेजस्वी मुनि के दर्शन हुए, उन ध्यान में लीन मुनि की तपस्या कितनी महान होगी| हे भगवन, वे मुनि किस उत्तम गति को प्राप्त होंगे ?”

मांस का मूल्य

एक बार राजा श्रेणिक ने राजसभा में बैठे हुए सामंतों पर प्रश्न भरी नज़र डालते हुए पूछा, "राजगृह में अभी सबसे सस्ती और सुलभ वस्तु क्या है, जिसे प्राप्त करके साधारण से साधारण मनुष्य भी अपनी क्षुधा को तृप्त कर सके?"
मगध नरेश के प्रश्न पर सामंत गंभीर हो गए और मन ही मन विचार करने लगे, "अन्न सबके लिए सुलभ है, सस्ता भी है|

त्याग का मूल्य

श्रमण भगवान महावीर के पंचम गणधर आर्य सुधर्मा के चरणों में जहाँ एक ओर बड़े बड़े राजा, राजकुमार तथा श्रेष्ठी आकर मुनि दीक्षा लेते, वहाँ दूसरी ओर दीन दरिद्र, यहाँ तक की पथ के भिखारी भी दीक्षित होते, साधना करते| इसी श्रंखला में एक बार राजगृह का एक लकड़हारा भी विरक्त होकर मुनि बन गया था| साधना के क्षेत्र में तो आत्मा की ही परख होती है, देह, वंश और कुल की नहीं|

आनंद श्रावक

किसी समय वाणिज्य नामक शहर में आनंद नामक व्यापारी रहता था | वह अपार धन संपदा का स्वामी था तथा राजा भी उसका सम्मान करता था|
एक बार उस शहर में भगवान महावीर स्वामी पधारे | आनंद भी उनके प्रवचन को सुनने पहुंचा | भगवान के प्रवचन को सुनकर उसने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया | चौदह वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन करने के पश्चात उसने सारे सांसारिक कार्यों से विरक्त होने का निश्चय किया | उसने अपने पुत्रों को अपने व्यापार तथा परिवार की ज़िम्मेदारी देकर कहा की अब उसके धर्मध्यान में किसी तरह का व्यवधान न डाला जाए | इस प्रकार वो अपना शेष जीवन धर्मध्यान में व्यतीत करने लगा| धर्म का आचरण करते हुए उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गई|

मन के बंधन

एक व्यापारी के पास पांच ऊंट थे| जिन पर सामान लादकर वह शहर शहर घूमता और कारोबार करता| एक बार शहर से लौटते हुए रात हो गई| वह एक सराय में रुका और एक पेड़ से ऊंटों को बंधने लगा| चार ऊंट तो बंध गए, मगर पांचवें के लिए रस्सी कम पड़ गई| व्यापारी परेशान हो गया| जब उसे कुछ नहीं सुझा तो उसने सराय के मालिक से मदद मांगने की सोची|

मुनि हरिकेशबल

एक समय की बात है| मथुरा नरेश राजा शंख को संसार से विरक्ति हो गई| उन्होंने अपना राज्य त्याग कर दीक्षा ले ली और उग्र ताप करने लगे| ताप के प्रभाव से उन्हें अनेक विशिष्ट लाब्धियाँ प्राप्त हो गई|
ग्रामानुग्राम घूमते हुए वे हस्तिनापुर पधारे| भिक्षा के लिए नगर की ओर निकले| नगर प्रवेश के दो मार्ग थे| दो मार्गों को देख कर मुनि विचार में पड़ गए| उन्होंने इधर उधर देखा तो एक आदमी अपने घर के बाहर बैठा था| मुनि ने उसके पास जाकर नगर में प्रवेश का मार्ग पूछा|

महासती मदनरेखा

सुदर्शनपुर के राजा मनिरथ तथा युवराज युगबाहू दोनों भाई थे| मनिरथ युगबाहु का पुत्र की तरह ध्यान रखता था तो युगबाहु अपने भाई को अपना पिता समझ कर उसकी हर आज्ञा का पालन करता था | दोनों भाइयों में बहुत स्नेह था | लोग उन्हें राम लक्ष्मण की जोड़ी कहते थे |

कपिल मुनि की कथा

कपिल के पिता काश्यप ब्राह्मण चौदह विद्याओं के ज्ञाता और कौशाम्बीनरेश जितशत्रु की राजसभा के एक रत्न थे| राजा उन्हें बहुत सम्मान देता था| बहुत ही ठाट बाट से वे राज सभा को जाते थे|
एक दिन काश्यप ब्राह्मण की मृत्यु हो गई| अचानक ही ब्राह्मण की मृत्यु हो जाने से उसकी पत्नी यशा और अल्पवयस्क पुत्र कपिल अनाथ हो गए| राज जितशत्रु ने उनके स्थान पर दुसरे विद्वान को नियुक्त कर दिया| अब वह ब्राह्मण ठाट बाट से राज्य सभा में जाने लगा| उस नए राजपंडित को देख कर यशा की आँखों से आंसू छलक आते|

सामायिक का मूल्य

भगवान महावीर ने जब श्रेणिक से कहा की तुम्हें नरक में जाना पड़ेगा तो यह सुनकर श्रेणिक का ह्रदय काँप उठा| हाथ जोड़कर से वह बोला "प्रभु! मैं आपका भक्त हूँ, फिर भी नरक में जाऊंगा? क्या मेरी भक्ति का कोई मूल्य नहीं?"
भगवान ने समझाया, "श्रेणिक! श्रद्धा और भक्ति के बल पर नरक से छुटकारा तो क्या स्वर्ग के सिंहासन की प्राप्ति भी असम्भव नहीं, परन्तु अपने उग्र कर्मों का फल तो प्रत्येक जीव को भोगना ही पड़ता है|"
लेकिन श्रेणिक संतुष्ट नहीं हुआ| सोचने लगा, "यह विशाल साम्राज्य! यह अक्षय कोष, इतनी धन दौलत क्या नरक से नहीं बचा सकते"

अमृत जीता विष हारा

भगवान महावीर के समय की बात है| मगध जनपद की राजधानी राजगृही में अर्जुन नाम का एक माली रहता था| नगर के बाहर उसका एक सुन्दर बगीचा था, जिसमें तरह तरह के पुष्प थे| अर्जुन इसी बगीचे से अपनी जीविका चलाता था| इसी बगीचे के पास मुद्गरपाणी यक्ष का एक प्राचीन मंदिर था, जिसमें हाथ में मुद्गर लिए हुए यक्ष की एक प्रतिमा थी|

अपना अपना पुरुषार्थ

किसी नगर में तीन मित्र रहते थे - एक राजकुमार, एक मंत्रीपुत्र और एक व्यापारी का पुत्र| एक बार तीनों इकठ्ठा होकर बोले की पता लगाया जाए कौन कैसे जीता है? राजकुमार ने कहा "मैं अपने पुण्य से जीता हूँ"| मंत्रीपुत्र ने कहा "मैं अपने बुद्धिबल से जीता हूँ"| व्यापारी के पुत्र ने कहा "मैं अपनी चतुराई से जीता हूँ"|
परीक्षा के लिए तीनों मित्र परदेश गए और किसी नगर में पँहुच कर एक उद्यान में ठहरे| व्यापारी पुत्र से कहा गया की वह शीघ्र ही भोजन की व्यवस्था करे|

बिना विचारे करने का फल

किसी स्त्री ने नेवला पाल रखा था| वह नेवले को दूध व लापसी खाने को देती और उसे अच्छी तरह से रखती थी|
एक बार की बात है की स्त्री घर के दरवाजे पर अनाज साफ कर रही थी| उसका नवजात बच्चा अन्दर खाट पर सो रहा था|

औषधिदान का महत्व

कावेरी नगरी में राजा उग्रसेन राज्य करते थे | उसी नगर में एक धनपति नाम सेठ रहता था जिसकी पत्नी का नाम धनश्री था। पूर्व पुण्य के उदय से धनश्री ने एक कन्या को जन्म दिया जिसका नाम वृषभसेना रखा गया। वृषभसेना को धाय रूपवती हमेशा नहलाया धुलाया करती थी। इसके नहाने का जल बह-बह कर एक गड्ढे में जमा होता रहता था।

णमोकार मंत्र का प्रभाव

किसी समय गंधमादन नामक पर्वत पर एक सुप्रतिष्ठ नाम के मुनिराज प्रतिमायोग से विराजमान थे। उस समय सुदर्शन नाम के एक देव ने क्रोधवश उनके ऊपर घोर उपसर्ग किया। मुनिराज परमशान्त भाव से उपसर्ग को सहन कर ध्यान में लीन हो गये अत: घातिया कर्मों का नाश कर वे केवली हो गये। उस समय देवों ने आकर उनकी पूजा की। पुन: राजा ने भगवान केवली के निकट प्रश्न किया कि-‘‘हे प्रभो! इस देव ने आपके ऊपर उपसर्ग क्यों किया?’’

आहारदान की महिमा

भोगवती नगरी के राजा कामवृष्टि की रानी मिष्टदाना के गर्भ में पापी बालक के आते ही राजा की मृत्यु हो गई और राजा के नौकर सुकृतपुण्य के हाथ में राज्य चला गया। माता ने बालक को पुण्यहीन समझकर उसका नाम ‘अकृतपुण्य’ रख दिया और परायी मजदूरी करके उसका पालन किया। किसी समय बालक सुकृतपुण्य के खेत पर काम करने के लिए चला गया।

आँखों का तारा

पनघट पर चार औरतें पानी भरने आईं, कुछ देर इधर—उधर की बातें करने के बाद उन्होंने बातों ही बातों में अपने-अपने बेटों की प्रशंसा शुरु कर दी। एक ने कहा, मेरा बेटा बहुत सुरीली बांसुरी बजाता है। दूसरी ने कहा, मेरा बेटा बहुत बड़ा पहलवान है।

दो पापी

मगध सम्राट महाराज श्रेणिक का दरबार भरा हुआ था। अत्यन्त प्रतिभाशाली राजकुमार अभयकुमार प्रधानमन्त्री के आसन पर विराजमान थे। बड़े-बड़े सामन्त तथा दरबारी अपने-अपने स्थान पर बैठे थे। प्रजा सम्बन्धी बातें होने लगीं। उसी सिलसिले में श्रेणिक ने पूछा, ‘‘अभयकुमार! क्या तुम यह बता सकते हो कि राजगृह में धर्मात्मा कितने हैं और पापी कितने हैं?’’

राजीमती की दृढ़ता

सौर्यपुर के अन्धकवृष्णि राजा के दस दशार्ह पुत्रों में वसुदेव तथा समुद्रविजय मुख्य थे।

वसुदेव के दो रानियाँ थीं-एक रोहिणी और दूसरी देवकी। पहली से बलदेव और दूसरी से कृष्ण का जन्म हुआ। समुद्रविजय की रानी का नाम शिवा था, जिसने नेमि को जन्म दिया।

जब नेमिकुमार आठ वर्ष के हुए तो कृष्ण द्वारा कंस का वध किये जाने पर जरासन्ध को यादवों पर बहुत क्रोध आया। उसके भय से यादव पश्चिम समुद्र तट पर स्थित द्वारका नगरी में जाकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात् कृष्ण और बलदेव ने जरासन्ध का वध किया और वे आधे भारतवर्ष के स्वामी हो गये।

चतुराई का मूल्य

किसी राजा की चित्रशाला में अनेक चित्रकार काम करते थे। उनमें एक बूढ़ा चित्रकार भी था। उसकी कन्या कनकमंजरी अपने पिता के लिए प्रतिदिन घर से भोजन लाती थी।

एक दिन वह भोजन के लिए आ रही थी कि रास्ते में उसे एक घुड़सवार मिला, जो बड़ी तेजी से अपना घोड़ा दौड़ाये लिये जा रहा था। कनकमंजरी घोड़े के नीचे आने से बच गयी और बड़ी कठिनता से प्राण बचाकर अपने पिता के पास पहुँची।

जीवन दृष्टि

किसी समय राजगृही नगरी में श्रेणिक नामक राजा राज्य करता था| उसके महामंत्री का नाम अभयकुमार था| एक बार राजगृही में भगवान महावीर का पधारना हुआ| प्रजा के साथ साथ राजा तथा महामंत्री भी उनके दर्शन करने एवं प्रवचन सुनने पंहुचे | उसी राज्य में कालशौकरिक नामक कसाई रहता था, उसे धर्म में बिल्कुल रुचि नहीं थी, लेकिन जब उसने महावीर के आगमन के बारे में सुना तो कौतुहलवश वो भी महावीर का प्रवचन सुनने पँहुच गया|

बुजुर्ग दंपत्ति

रेल्वे स्टेशन पर चाय बेचने वाले लड़के की नज़रें अचानक एक बुजुर्ग दंपत्ति पर पड़ी| उसने देखा की वो बुजुर्ग पति अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर उसे सहारा देते हुए चल रहे थे| थोड़ी दूर जाकर वो दंपत्ति खाली जगह पर बैठ गए| कपड़ों के पहनावे से वे गरीब लग रहे थे|

बाज़ और चूजा

एक बार की बात है| एक बाज़ का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया| कुछ दिनों के बाद उन अण्डों में से चूजे निकले| बाज़ का बच्चा भी उनमें से एक था| वो उन्हीं के बीच बड़ा होने लगा| वो वही करता जो बाकी चूजे करते| मिट्टी में इधर उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीं की तरह चूं चूं करता|

काम का बँटवारा

राजगृह में धन्ना नामक एक चतुर व समृद्धिशाली व्यापारी रहता था| उसके धनपाल, धनदेव, धनगोप तथा धनरक्षित नाम के चार पुत्र और उनकी चार पत्नियाँ आदि भरा पूरा सुखी परिवार था|
एक दिन धन्ना ने मन में सोचा की अब मैं वृद्ध हो गया हूँ, न जाने कब सांस छुट जाए| अपने जीवन काल में ही मैं अपने परिवार की जिम्मेदारीयों का बँटवारा इस प्रकार कर दूँ की मेरी मृत्यु के बाद भी परिवार में प्रेम और समृद्धि बनी रहे|

जमा पूँजी

मेघदत्त नाम का व्यापारी एक दिन अपनी दुकान पर बैठा विचार कर रहा था की मुझे अपने तीनों पुत्रों की योग्यता और चतुरता की परीक्षा लेनी चाहिए| ऐसा सोचकर उसने अपने तीनों पुत्रों देवदत्त, शिवदत्त तथा जिनदत्त को एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ देते हुए कहा की तुम तीनों को मैं बराबर पूँजी दे रहा हूँ, परदेश जाकर इससे व्यापार करो|

परिवर्तन

चम्पा नगरी में जितशत्रु राजा था| सुबुद्धि नाम का उसका मंत्री बड़ा चतुर, विवेकशील और भगवान महावीर के तत्वज्ञान का गहरा जानकार था|
एक बार राजा जितशत्रु अपने मंत्रियों के साथ किसी प्रीतीभोज में सम्मिलित हुए| वहाँ पर महाराज ने भोजन की प्रशंसा की  तथा अन्य सब लोगों ने भी महाराज की हाँ में हाँ मिलाते हुए भोजन की बहुत प्रशंसा की| किन्तु मंत्री सुबुद्धि शांत और घम्भीर बना रहा| यह देख राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ| उन्होंने मंत्री से पुछा " मन्त्रिवर! क्या बात है ? इतना स्वादिष्ट भोजन बना है, सभी लोग दिल खोलकर प्रशंसा कर रहे हैं और आप हैं की मौनव्रत लिए बैठे हैं|"

प्रलोभन का मायाजाल

किसी समय चम्पानगरी में माकंदी नमक व्यापारी रहता था| उसके जिनपाल तथा जिनरक्षित नाम के बड़े ही साहसी व चतुर दो पुत्र थे | उन्होंने ग्यारह बार व्यापार के लिए साहसिक समुद्री यात्राएं करके अपार धन कमाया| अब वे बारहवीं बार यात्रा की तैयारी कर रहे थे| उनके माता पिता ने उनको समझाया की तुमने इतना धन कमाया है उसका यहाँ रहकर भोग करो | अब ज्यादा धन कमाने की लालसा में इतनी जोख़िम भरी समुद्री यात्राएं नहीं करनी चाहिए, परन्तु धन कमाने की असीम लालसा में फंसे दोनों साहसी भाईयों ने माता पिता की बात की परवाह नहीं की और अपनी समुद्री यात्रा पर निकल पड़े|

चंदनबाला की कहानी

चम्पानगरी में दधिवाहन राजा राज्य करते थे| उनकी पत्नी का नाम धारिणी तथा पुत्री का नाम वसुमती था| एक बार शत्रु शतानीक ने चम्पानगरी पर आक्रमण कर लूटपाट मचा दी| आकस्मिक हुए आक्रमण का मुकाबला नहीं कर पाने से राजा दधिवाहन जंगल में भाग गए| शत्रु सेना के एक सारथी ने धारिणी तथा वसुमती का अपहरण कर लिया| जब सारथी एकांत जंगल में पँहुचा तो उसने अपनी कुत्सित भावना रानी के सामने प्रकट की|